यीशु की मृत्यु ईसाई धर्म के अनुसार, उसके प्राचीन शिष्य यहूदी साधुओं के एक समूह के द्वारा आयोजित एक शामिल किए गए सांहेद्रिन (Sanhedrin) के सम्मुख हुई थी। सांहेद्रिन एक यहूदी धार्मिक संस्था थी जो धार्मिक और सामाजिक मामलों पर निर्णय लेने का कार्य करती थी।
यहूदी साधुओं को यह मान्यता थी कि यीशु ने अपने शिक्षाओं के कारण आपत्तिजनक ठहराया था, और वह खुद को यहूदी धर्म के मसीह (Messiah) और परमेश्वर का पुत्र मानने का दावा कर रहा था। इसके परिणामस्वरूप, उन्होंने यीशु को शिक्षाएं देने का और उसके अनुयायियों को प्रभावित करने का आरोप लगाया और उसे मृत्युदंड के लिए प्रस्तुत किया।

यीशु को यीहूदियों के राजा के रूप में मान लेने का आरोप भी लगा गया और उसे रोमन सत्ताधिकारी पॉन्टियस पाइलेट (Pontius Pilate) के सामने प्रस्तुत किया गया, जिससे उसे सिरीज़ परिवार के राजा के रूप में दोषी पाया गया और उसे दण्डित करने का निर्णय लिया गया। यीशु को उबारने के लिए, वह बड़े पशुओं की चढ़ाई में सिरे से बंधाया गया और उसे क्रूस (Cross) पर छड़ाया गया, जहां उसकी मृत्यु हुई।